Kavita Jha

Add To collaction

आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग-13
पुरानी रस्मों के अनुसार और पंडित जी के बताने के बाद कि सिद्धार्थ और साधना का विवाह अशुभ महुरत में हुआ था इसलिए पुनः विवाह करवाना जरूरी था जिससे बुरे नक्षत्र का प्रभाव कम हो जाए और इनका दांपत्य जीवन अच्छा बीते।
सिद्धार्थ के घर में दिन में भोज और रात में रिसेप्शन पार्टी की तैयारी हो रही है।

अब आगे...
सुबह चार से सात बजे तक सिद्धार्थ और साधना की शादी के मंत्रों का जाप ,पूजा पाठ से घर के एक कोने में दीपा की आत्मा परेशान हो रही थी।उस हवनकुंड के धुंँए से वो खुद को घुटता हुआ महसूस कर रही थी।

शरीर के ना रहने से भी आत्मा को ही बहुत कष्ट होता है यह दीपा अब अच्छे से समझ गई थी। वो परेशान हो रही थी ना तो वहाँ से भाग सकती थी और ना ही वहांँ ठहरा जा रहा था उससे।
 
सावन वहीं शांति से खड़ा होकर अपनी साधना को किसी और का होते देख रहा था। बहुत बड़ी भूल कर बैठा था वो जो बिना कुछ सोचे समझे अपनी मौसी से ही प्यार कर बैठा। अपने समाज में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा बस इसी अवसाद में आ उसने खुद को इतनी बड़ी सजा दी और अपनी कलाई की नस काट ली जिससे कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो गई।उसकी आत्महत्या का प्रयास भी सफल रहा और उसके साथ भी वही हुआ जो बाकी लोगों के साथ होता है आत्महत्या के बाद और दीपा के साथ हुआ आत्महत्या करने के बाद।उसकी आत्मा भी भटक रही थी पर वो आत्मग्लानि में अब भी जल रहा था।

 वो अपनी उन यादों से निकल ही नहीं पाया था।

उम्र में साधना से कुछ साल बड़ा था सावन पर रिश्ते में तो बहुत छोटा था। कैसे इतनी बड़ी भूल कर बैठा उसे प्यार कर बैठा जिसका साथ कभी नहीं निभा सकता।
 उसे जीवन भर साथ देने का वायदा जो किया है उसे कैसे निभाएगा? यही बात उसे हमेशा परेशान करती रही और वो उस हाथ को काट कर फैंक देना चाहता था जिससे वो साधना को छूता था। उसे खुद से ही घिन आने लगी थी जब उसकी साधना की माँ ने उन दोनों के बीच के संबंध को बताया जिससे वो अनजान था।
 मौसी माँ समान होती है और वो साधना में अपनी होने वाली पत्नी को देखता आया था। 

किशोरावस्था की उम्र होती ही कुछ ऐसी है जब प्यार का बीज अंकुरित होता है किसी को देखने के बाद मन में।
बस सावन के दिल में भी वही प्रेम जन्म उठा जब पहली बार साधना को अपनी मम्मी की नानी के घर देखा। वो तब 13 साल का ही तो था और साधना 11 साल की।वो पहली बार ही अपनी नानी घर आई थी। उसे भी कहाँ पता था कि सावन की वो मौसी लगेगी। 

दोनों दिन भर खेलते, बातें करते, खेत खलिहान में घूमा करते । एक दोनों का साथ दोनों को अच्छा लगता।
आम के बगीचे में जाकर घंटों वहाँ बिताते। साधना पहली बार गांँव गई थी और सावन तो हर साल जाया करता।
कभी आम तो कभी लीची और कभी जामुन के पेड़ पर चढ़कर दोनों बैठ जाते। कुछ ही दिनों में सावन ने साधना को पेड़ पर चढ़ना सिखा दिया।

सावन कहता , "यहाँ गाँव में बहुत सारी भूत चुड़ैल दोपहर में घूमती है, तुझे डर नहीं लगता।"
,,तो साधना बड़े प्यार से अपनी दोनों बाहें उसके गले में डालकर कहती,"जब तूं है तो किस बात का डर। मैं तो हमेशा तेरे साथ रहूंगी और कोई डर मुझे छू भी नहीं पाएगा।"

"अच्छा झूठी कहीं की.." 
 कह कर एक दिन जब सावन ने साधना को जामुन के पेड़ पर बैठे हुए धक्का दिया और ठीक उस जामुन के पेड़ के नीचे तालाब था। साधना उसमें जा गिरी।सावन ने मज़ाक में ही धक्का दिया था पर ऐसा भी हो सकता है उसे कहाँ पता था।

 साधना भी आँखे बंद किए ,
"आई लव यू... सावन... तुम हो तो डरना क्या...?"
 ,,कहते हुए तालाब में धड़ाम से जा गिरी।
यह देख सावन की सांँसें रुकने लगी।उसकी जगह कोई और बच्चा होता तो वो कब का भाग गया होता पर सावन भी तुरंत तालाब में कूद पड़ा और साधना को डूबने से बचा लिया।
उसने डूबती हुई साधना को अपने सीने से दबोचा और तैरते हुए तालाब के किनारे ले आया।
अपने हाथों की पूरी ताकत से उसके पीठ को दबाते हुए सारा पानी निकाला। 

साधना बेहोश हो गई थी उसे होश में लाने के लिए पहले उसके ठंडे पड़े हाथ पैरों को खूब रगड़ कर गर्माहट दी फिर अपनी साँसो की गर्माहट दी।
डर तो बुरी तरह गया था सावन भी उस दिन।

उसे डर इस बात का नहीं था कि गांँव में सब लोग उसे डांटेंगे पर वो डर रहा था कि कहीं साधना को कुछ ना हो जाए। बस उसकी जान बच जाए वो यही प्रार्थना कर रहा था। खुद पर गुस्सा भी खूब आ रहा था कि मज़ाक में ही यह उसने क्या किया।

भगवान ने उस बाल मन और सच्चे प्रेम को सुन लिया और साधना थोड़ी ही देर में होश में आ गई। सावन में उसे अपने सीने से लगा लिया और रोने लगा।
" तुझे कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता।"..सावन बोल रहा था और साधना उसके पास खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी।

" मुझे कुछ नहीं होता,यह पता था मुझे जब तूने मुझे धक्का दिया मैं जानती थी तूं भी तालाब में कूद कर मुझे बचा लेगा। अपने स्कूल का स्विमिंग चैंपियन जो ठहरा।"

"अच्छा तो क्या दिल्ली वालों को तैरना नहीं आता। तुम्हारे स्कूल के आसपास कोई तलाब नहीं है क्या?" जब सावन ने कहा तो साधना हँस पड़ी।"तालाब.. हमारे दिल्ली में तो चुल्लू भर पानी भी मिलना मुश्किल है डूबने के लिए।"

ऐसा क्या? चल कोई नहीं मैं तुझे सिखाऊंगा तैरना।

सावन की आत्मा अपनी उन यादों में खोई थी जिसे शरीर से मुक्ति के बाद भी वो मुक्त कहांँ कर पाया था।


दीपा ने जब सावन को शांति से खड़े देखा तो पूछा तुम्हें दिक्कत नहीं हो रही इस हवन के धुंए से। तुम भी तो मेरी तरह एक बुरी आत्मा ही हो। हमें अपने घर से दूर भगाने के लिए ही इतना धुआँ किया जा रहा है।मेरा तो दम घुट रहा है।


क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

****
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
##लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता 

   16
1 Comments

Gunjan Kamal

27-Sep-2022 07:21 PM

शानदार

Reply